Medical collage ka bargad ka Ped - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मेडिकल कॉलेज का बरगद का पेड़ - भाग 1


हर किसी के जीवन में कोई न कोई एक ऐसी घटना जरुर होती है जिसे वो अपने जीवन में सबसे बुरा समय मानता है। लेकिन किसी न किसी रूप में कोई न कोई हमेशा उन परिस्थितियों में मदद के लिए पहुँच जाता है।


मैं आज आप लोगों के सामने एक ऐसी ही घटना का उल्लेख करने जा रहा हूँ। ये घटना मेरी मौसी के बेटे जिनका नाम अजय है उनके साथ घटी थी। वो मेरे बड़े भाई हैं और ये घटना भी काफी पहले की है जब वो करीब आठ साल के रहे होंगे। तब मौसी कानपूर मेडिकल कॉलेज के पास हेलेट में रहती थीं। भईया के दादा जी काफी जाने माने इन्सान थे वहां की अच्छी खासी हस्तियों में उनका नाम था। आज़ाद मैगज़ीन कार्नर के नाम से उनकी किताबो की अच्छी खासी दुकान थी और न्यूज़ पेपर के कानपुर में सबसे बड़े हॉकर थे। उनका नाम कुछ और ही था मगर वहां सब उन्हें आज़ाद के नाम से जानते थे।

आज़ाद के नाम से प्रसिद्ध वो व्यक्ति, अपनेपन, उदारता और सोम्य व्यवहार की परिभाषा थे। मैं भी उन्हें दादा जी ही कहता था और वो मुझे भी उतना ही प्यार करते थे जितना के अपने पोतों को करते थे। हेलेट में रहने के कारण वो लोग कानपुर मेडिकल कॉलेज के बहुत पास रहते थे। अजय भईया और उनके बड़े भाई अक्सर मेडिकल कॉलेज के पार्क और बगीचों में खेलने जाया करते थे। वहां के लोगो के साथ अच्छे व्यव्हार की वजह से उन्हें कभी कोई मना नहीं करता था।

रोज़ के जैसे ही दिन चल रहे थे दिवाली आने को थी और बच्चो की छुट्टियाँ चल रही थी। दोनों भईया उस दिन साइकिल से खेल रहे थे बड़े भईया ने अजय भईया को पीछे बैठा रखा था। और वो दोनों वहीँ मेडिकल कॉलेज से थोड़ी दूर पर ही साइकिल से घूम रहे थे। फिर घुमते हुए मेडिकल कॉलेज के पास आ गए। वहां पर बड़े भईया साइकिल से उतर गए और वहां के एक अंकल जो की पहचान के थे उनसे कुछ बात करने लगे। साइकिल खड़ी थी और उस पर पीछे की सीट पर अजय भईया अभी भी बैठे थे। अभी पांच मिनट ही हुए होंगे के अचानक अजय भईया साइकिल समेत निचे गिर पड़े। वो अंकल और बड़े भईया उनके पास आये उन्हें उठाया मगर वो बेहोश हो चुके थे। दोनों सोचा के शायद संतुलन खोने की वजह से गया और वो उन्हें उठाकर घर ले आये। घर आने पर मौसी जी उनके मुंह पर पानी वगेरह छिड़का मगर उन्हें कोई होश नहीं आ रहा था। अचानक उनकी सांसे उखड़ने सी लगी और वो लम्बी लम्बी सांसे लेने लगे।

अजय अजय! सब आस पास उन्हें उनके नाम से बुलाये जा रहे थे मगर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा था और आंखें भी नहीं खुल रही थी। मेडिकल कॉलेज पास ही था इसलिए बिना देर किये वहां मौजूद सब लोग वो अंकल, मौसी और मौसा जी भी भईया को लेकर सीधा इमरजेंसी में पहुंचे। डॉक्टरों ने साडी पूछ ताछ की। और सबको बाहर करके जांच में लग गए। सर पर कोई चोट नहीं थी और न ही शरीर पर छोटी खरोंचो के सिवा कोई बड़ा ज़ख्म दिखा। सांसे फिर उसे उखड़ने सी लगी और डॉक्टर ने ऑक्सीजन देने के मास्क लगा दिया। सांसे फिर भी कोई ख़ास काबू में नहीं आई। थोड़ी थोड़ी देर में उखड़ने लगती और फिर जब प्रेशर बढाया जाता तो साधारण हो जाती। डॉक्टरों को बेहोशी की वजह का कोई पता नहीं चल रहा था। इसलिए उन्होंने इमरजेंसी एक्सरे करवाया वो भी नार्मल था बिलकुल भी कहीं से कोई खराबी नहीं दिखी।

वहां दूसरी तरफ एक आदमी दौड़ा दौड़ा गया और दादा जी से बोल दिया की "आज़ाद जी आपका पोता अस्पताल में है और बहुत सीरियस है।"

उन्होंने बिना किसी देर के दुकान में बिना ताला लगाये केवल शटर गिराया और सीधा मेडिकल कॉलेज पहुँच गए। वहां सब उन्हें जानते थे इसलिए उन्हें किसी से भी अपने पोते के बारे में पूछने की जरुरत नहीं पड़ी। डॉक्टर खुद आये और साड़ी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए उन्हें भईया के पास ले गए। हालत काफी नाज़ुक बता कर ५ -७ डॉक्टर लगातार निगरानी में लगे थे। दिल की धड़कन मशीन में अपनी सीमा पर पहुचने लगी थी और मशीन की आवाज़ ने हालत बयां करनी शुरू कर दी थी। डॉक्टर ने सबको बाहर कर दिया अबतक मेरे मामा जी लोग भी वहां पहुँच चुके थे।

दादा जी रिसेप्शन के पास गए और अपने पहचान के डॉक्टरों को फ़ोन कर दिया। कुछ दस मिनट के बाद ही वहां पर ५ डॉक्टर और आ गए जो की उस मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर थे। दादा जी ने मिलकर उन्हें पहले सारी बात बताई। वो उन्होंने ने ध्यान से सुना और फिर बिना देर किये उस वार्ड की तरफ बढ़ गए जहाँ भईया को रखा गया था। उनके दरवाजा खोलने से पहले ही अन्दर से बाहर आ रहे डॉक्टर ने दरवाजा खोल और प्रोफेसर को देखते ही कहा की "सर कोई फ़ायदा नहीं है, लड़का मर चुका है।"

हलाकि ये बात उसने धीरे से कही लेकिन दादा जी ने ये बात सुन ली और घबरा कर तेज़ तेज़ से रोने लगे। बाकि डॉक्टर और प्रोफेसर ने उन्हें संभाला और फिर उनमे से एक प्रोफेसर जिन्हें सब प्रोफेसर त्यागी के नाम से जान्ते थे। उन्होंने खुद भईया को चेक करने को कहा और उनके साथ बाकि के ३ प्रोफेसर वार्ड में सहायक डॉक्टरों के साथ चले गए और बाहर एक प्रोफेसर अभी भी दादा जी के साथ थे और उन्हें समझा रहे थे के प्रोफेसर को जांच करने दो ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जायेगा। मौसी जी को तब तक मौसा जी और मामा जी ने घर भेज दिया था वरना न जाने उनकी क्या हालत होती?

अन्दर से आने वाली प्रोफेसर की आवाजें वहां मौजूद लोगो की सांसो को ऊपर नीचे होने पर मजबूर कर रहीं थीं।

"देखो धड़कन चली क्या?"

"ठीक से यहाँ दबाव बनाओ। अब बताओ।"

"पैरो को देखो हिलते हैं या नहीं?"

"जान है जान है। देखो थोडा हिल इसका हाथ।"

इस तरह के आवाजें लगातार सांसे ऊपर नीचे करती जा रही थी। फिर अचानक सरे प्रोफेसर शांत हो गए और करीब दस मिनट तक कोई आवाज़ नहीं आई। किसी उन्होनी की आशंका ने सारी उम्मीदों को पीछे छोड़ दिया था, तभी प्रोफेसर त्यागी बाहर आये और बताया की "बच्चे को कुछ नहीं हुआ है आज़ाद जी, बस प्रार्थना कीजिये की वो जल्दी ठीक हो जाए।"

इस बात से सबको राहत मिली थी मगर अभी भी प्रार्थना जारी थी। प्रोफेसर भी इस बात से बहुत परेशान थे के जब सारी रिपोर्ट और एक्सरे सामान्य हैं तो फिर इतनी सीरियस हालत की वजह क्या है? फ़िलहाल प्रोफेसर उनकी निगरानी में लगे हुए थे और आनन् फानन में कई एक्सरे दुबारा करवा लिए थे।

उन्होंने ये बात मामा जी और मौसा जी से भी कही के "हम अभी सिर्फ जो परेशानी आ रही है उसका इलाज कर रहे हैं मगर इस बेहोशी और इस हालत की जड़ हमे नहीं मिल रही। सब कुछ नार्मल है मगर पता नहीं क्या हुआ है और ऊपर वाले को क्या मंजूर है?"
अब सब कुछ ऊपर वाले पर ही छोड़ कर सब बैठ गए थे। घबराहट और बेचैनी ने दिमाग का चलना भी रोक दिया था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये और किसके पास जाएँ?

रात होने लगी थी मगर भूख प्यास से बेखबर दादा जी मौसा जी और मामा जी हॉस्पिटल में ही जमे हुए थे, मोबाइल का तब जमाना नहीं था इसलिए रिश्तेदारों में ये बात धीरे धीरे ही फ़ैल रही थी। रात गहराती जा रही थी घर से आया हुआ खाना जस का तस रखा था मगर किसी का खाने का मन नहीं हो रहा था। फिर दादा जी को घर भेज कर मामा जी और मौसा जी ही केवल हॉस्पिटल में रुके थे और ICU में भर्ती भईया की समय समय की खबर ले रहे थे। भईया की हालत वेसे ही बनी हुयी थी कोई होश नहीं था उन्हें।
रात के करीब एक बजे मामा जी सिगरेट पीने के लिए बाहर गए। वो सिगरेट पीते हुए टहल रहे थे और ये सोच रहे थे के न जाने क्या होने वाला है और क्या हो सकता है?

तभी पीछे से आवाज़ आई, "काका भईया नमस्कार।"

मामा जी ने पीछे मुड़कर देखा और बिना मुस्कुराये जवाब दिया "अरे मन्नी लाल, कैसे हो?"

"हम तो ठीक हैं, आप बताईये इतनी रात को और यहाँ कैसे?" उन्होंने मामा जी से पूछा।

मामा जी ने शुरू से आखिरी तक सारी बात बतायी।

"इतना कुछ हो गया हमे बताया भी नहीं, हम तो यही हैं ड्यूटी पर बस पीछे मुर्दा घर में।" उन्होंने मामा जी परेशानी समझते हुए कहा।

"क्या बताये भईया, सुबह से तो खाने पीने का भी होश नहीं है। घर पर दीदी भी बेहाल पड़ी हैं समझ नहीं आ रहा क्या हो रहा है क्या होगा?" मामा जी ने अपना हमदर्द समझ कर अपना सारा दुःख नम आँखों से उनके सामने रख दिया।

"भईया परेशान न हो, बस ३ घंटे और रुक जाओ सुबेरा होते ही बस हम अपना झोला ले आयें फिर देखते हैं कहीं कोई और बात तो नहीं है।" उन्होंने मामा जी से कहा।

"देखो भईया, जेसा बन पड़े करो। बस ये ठीक हो जाये।" मामा जी ने उनसे नाउम्मीदी से कहा।
उसके बाद थोडा इधर उधर की बात की और वापस आ कर मामा जी भी वहीँ ICU के बाहर बैठ गए।

जस के तस रह कर किसी तरह से दोनों ने वहीँ पर रात गुजार दी। रात भर भईया में कोई बदलाव न देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें ICU से अलग एक वार्ड में स्थानांतरित कर दिया।

सुबह दादा जी और मौसी जी भी आयीं और रोते बिलखते किसी तरह अपने बेटे को देखा और फिर मौसा जी के साथ घर चली गयीं। मामा जी ने दादा जी मन्नी लाल के बारे में बताया और उनकी इज़ाज़त मांगी। उन्होंने अपने बेटे के लिए जिस तंत्र मन्त्र पर कभी विश्वास नहीं करते थे, उसे भी इज़ाज़त देदी। शायद कोई चमत्कार हो जाये और अजय ठीक हो जाये।

मामा जी भी घर गए और जल्दी से जल्दी नहा धो कर वापस आ गए क्योकि उन्हें मन्नी लाल से जो मिलना था। खैर मन्नी लाल को आने में देर हुयी वो ६ बजे की बजाये साढ़े सात बजे आये मगर उनकी आने में देरी को लेकर किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई। मामा जी उनके इंतज़ार में थे और उनके आते ही सीधा उस वार्ड की तरफ बढ़ गए जहाँ भईया को डॉक्टरों ने रखा था।

मामा आराम से जाकर अन्दर दादा जी से बताने लगे की जिनके बारे में बताया था वो आ गए हैं। लेकिन ये क्या वो दरवाज़े के बाहर ही खड़े थे। मामा जी ने उन्हें अन्दर आने का इशारा किया मगर फिर भी वही खड़े रहे अन्दर आने की कोशिश करते और फिर से वहीँ खड़े हो जाते।

ये देख कर मामा जी को अजीब लगा और मामा जी ने जाकर उनसे पूछा "क्या हुआ भईया अन्दर क्यों नहीं आ रहे?"

"काका भईया हम बहुत कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये लड़का जिसकी चपेट में है वो इतनी प्रबल शक्ति है के हम खुद को जिस विद्या से बांधे हैं उसके साथ हम इस कमरे में घुस ही नहीं सकते।" उन्होंने ने थोड़ी सी माथे पर चिंता की लकीरों को उभर कर कहा।

मामा जी इस बात से थोडा परेशान हुए और बोले "अब क्या करें भईया? अब कैसे क्या होगा

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED